Saturday, May 12, 2012

बुलबुले

 

अभी तो कितनी बूंदे गिरी
यही गिन रही थी मैं

चकित हो कर पानी में बनते
बुलबुले देख रही थी मैं

तंग खिड़की से हाथों को आज़ाद किया
मधुर संगीत निकला
पड़ी जब बूंदे लाल हरी चूड़ियों पर
खन खन की आवाज़ सुनती रह गयी मैं

अब बस बाँध टूट गया
मन विचलित हो उठा
ऐसी व्याकुलता, समझाए ना समझ आये
बेसुध सी हो कर, बस भाग रही थी मैं

छन छनाती पायल रुकी पानी के समीप 
वही बुलबुले अब पैरो से खेल रहे थे
कितना आशार्यजनक था
पानी में यूँही प्रतिछवि देख रही थी मैं


All Rights Reserved: Nidhi Jain (12/05/2012)

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