Monday, December 31, 2012

आखिर क्यों?



लाल परदे से झांक रही थी 
एक किरण 
पतले परदे, उस खिड़की पर टंगे थे 
एक सवाल उठा 
आखिर क्यों कैद हो जाते हैं लोग 
अपनी ही यादों में?

खिड़की के सामने एक पेड़ है 
हरा हुआ करता था कभी 
आज छोटा दिखाई पड़ रहा है 
थोडा बेजान भी मालूम पड़ता है 
उसने भी कभी यह सवाल किया होगा 

आखिर क्यों कैद हो जाते हैं लोग 
अपनी ही यादों में?

ध्यान से देखने पर जान पड़ा 
पेड़ की कोख में कुछ तिनके सजे है 
एक घोसला था, संजो के रखा था 
कोई याद रही होगी शायद 
सवाल फिर वही उठा 

आखिर क्यों कैद हो जाते हैं लोग 
अपनी ही यादों में?


All Rights Reserved: Nidhi Jain (30/12/2012)

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