Tuesday, November 10, 2015

किताब ...


वो है ना पुराना कमरा,
उस कमरे की वो जाली वाली खिड़की ,
उसके बगल में टेबल पर,
आज भी वो नीले रंग की किताब पड़ी है। 

अरे, वही किताब जो तुमने दी थी,
कुछ माह पहले। नहीं, शायद साल। 
वक्त भी याद नहीं रहता,
हाँ, हाँ, वो भी भुल्लकड़ हो गया है। 

मिटटी बैठ गयी है किताब के कवर पर,
अंदर एक चिठ्ठी मिली,
कोरी चिठ्ठी। 

तुमने कहा था ना, कि गुलाब तो सब देते हैं,
कोरी चिठ्ठी कोई नहीं,
कागज़ मेरा होगा, शब्द तुम्हारे। 

पीला पड़ गया है आज कागज़। 

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