Friday, July 30, 2010

साया






किसी पुरानी याद ने

आज मेरा रास्ता रोका
और हँसते हुए पूछा
कहा चल पड़ी?

मैंने कहा
नया सूरज निकला
क्या तुमने देखा?
बस उस ओर चल पड़ी

यादो की छाओं में तो बैठो
रोक कर रास्ता वो बोली
इतनी कड़ी धूप में
कितने कदम तुम चल पाओगी

कोशिशों के बाद भी ना समझी वो
कि उस साये से डर लगता है मुझे
क्यूँ ना रुक सकी मैं यादों में
कैसे उसको बताती
अँधेरे में तो परछाई भी
साथ नहीं निभाती







All Rights Reserved: Nidhi Jain (30/07/2010)

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7 comments:

  1. Thanx a ton arnab!!
    :)

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  2. I don't really know much about hindi poems, and also, to be honest my hindi isn't that great either... but somewhere, this one was something that I could connect with... :)

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  3. amazing!!
    thnk u gentleman :)

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  4. अलसाई सी ठण्ड की एक रात,
    अनकही सी वह बात,
    चेतना को दस्तक दे गयी,
    यादों की ज़ंजीर थमा गयी |

    I really felt touched by the lines penned down by you in the poem 'साया'.

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  5. awsm lines there!

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  6. after reading this.. i actually felt....

    जैसे किसी पुरानी याद ने दस्तक दे दी


    AWSSSSSSSM!

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