Saturday, August 27, 2011

सफ़ेद कश्तियाँ




मटमैले पानी में तैरती कश्तियाँ
देखते ही गदगद हो उठता था दिल
हलकी लहरों के साथ तैरती
वो छोटी सफ़ेद कश्तियाँ

तले में भले ही हों अनदेखी गहराइयाँ
मदमस्त चलती जाती हैं
बेफिक्र, मानो मुस्कुराते हुए
वो छोटी सफ़ेद कश्तियाँ

मेरे हाथों से बनी वो कश्तियाँ
डगमगाती, ठिठक जाती
लहरों के साथ फिर भी चलती जाती
वो छोटी सफ़ेद कश्तियाँ

घने समुद्र के बीच लहरों में हू मैं
यूँ तो यह कश्ती है उनमे से ही एक
पर दूर से दिखती हैं रंगीन
वो छोटी सफ़ेद कश्तियाँ

पानी के रोद्र रूप के बीच में
एक किरण कही से आ गयी
उजाले में दिखीं, सफ़ेद ही थीं 
वो छोटी सफ़ेद कश्तियाँ

All Rights Reserved: Nidhi Jain (27/08/2011)

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